शनिवार, 31 दिसंबर 2011

विदा २०११ !


यह लो, एक बरस बीत गया

हम प्रेम की प्रतीक्षा में
बस लड़ते ही रह गए
साल भर

इसी तरह गँवा दिए
साल दर साल
लड़ते लड़ते
प्रेम की प्रतीक्षा में

बहुत खरोंचें दीं हम दोनों ने
एक दूसरे को

बहुत अपराध किए
बहुत सताया एक दूजे को
एक दूजे का प्यार जानते हुए भी

समय तेज़ी से दौड़ने लगा है
पिछले हर बरस से तेज

इस तीव्र काल प्रवाह में
कल हो न हो
फिर समय मिले न मिले

क्षमा माँग लूँ तुमसे
तुम जो धरती हो
तुम जो आकाश हो
तुम जो जल हो, वायु हो
तुम जो अग्नि हो, प्राण हो ,प्रेम हो
मैंने तुम्हें बहुत सताया , बहुत बहुत सताया
मेरे अपराधों को क्षमा करना

नए वर्ष में
फिर मिलेंगे हम
नए हर्ष से

6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभकामनाएँ ।

    प्रतीक्षा और क्षमा के द्वैत में
    सालों न बिताएँ
    एक दूजे को
    हर दिन गले लगाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  2. नववर्ष में
    फिर मिलेंगे
    हर्ष से

    सम्‍भव है। शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर ह्रदय स्पर्शी भाव !
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  4. @ Kavita Vachaknavee
    शुभकामनाओं और संदेश के लिए आभारी हूँ. काश! ऐसी तमाम सूक्तियों कों मनुष्य अपने आचरण में उतार सकता तो धरती जीने की बेहतर जगह होती - युद्धविहीन धरती.

    जवाब देंहटाएं
  5. @ajit gupta
    आदरणीया,
    संभावना की बात आपने खूब कही.
    प्रतीक्षा रहेगी.

    जवाब देंहटाएं
  6. @ Suman
    भाव पाठक तक पहुँच जाए इसी में तो कविता और कवि की मुक्ति है.
    धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं