शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

प्रफुल्लता

प्राण की अमराइयों में
प्रीत का कोकिल

बोल उट्ठा ...

बौर रोमों में
उठे हैं खिल


31 मार्च, 2000

मैं उजला होने आया...

मैं उजला होने आया था,
जग ने और कलुष में धोया!
जिसको धोने की खातिर मैं,
दिवस-रैन जन्मों तक रोया!!

31 मार्च, 2000
14:00 

सोचा था आकाश बनूँगा ...

सोचा था, आकाश बनूँगा, पर पाषाण बना
पुष्प वाटिका जली, यज्ञ-मंडप श्मसान बना


प्रभुओं की स्तुति छोड़, तनिक जो दोष बताया तो
कल तक का भगवान, आज पापी शैतान बना


मैंने जिसको छुआ कभी वह, पानी अमरित था
पर अपनों का अमरित दान, मुझे विष पान बना

30 मार्च, 2004.
रात्रि 02:20


मंगलवार, 20 सितंबर 2016

प्यार का पर्याय पूछा सिंधु से कल शाम


Dr. Rishabha Deo Sharma reciting his famous geet "Pyar ka paryaay pucha Sindhu se kal shaam" in Vishva Vatsalya Manch meeting in Hyderabad on Sept. 19th 2016.