ऋषभ की कविताएँ
रविवार, 20 दिसंबर 2009
नव संवत्सर शुभाकांक्षा
गए बरस की दहशतगर्दी
ठिठुरन सी भर गई नसों में,
नया बरस
कुछ तो गरमाहट लाए .........
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