- उन्होंने जोरों से घोषणा की :
मैं अब अपने सारेनिर्णय ख़ुद लूंगी,
इन देवताओं का बोझ कंधों पर न ढोना पड़ेगा.
-मैंने खुले आसमान में उड़ान भरी ही थी
हम तुम्हें अमृत के पंख देंगे.
मेरा अकेले उड़ने का मन था.
-फ़रिश्ते आग-बबूला हो गए.
उनके अमृतवर्षी पंख ज्वालामुखी बन गए.
गंधक और तेजाब की बारिश में मैं झुलस गई.
-सर्पविष की पहली ही फुहार ने मेरी दृष्टि छीन ली
और मेरी त्वचा को वेधकर तेजाब की जलन
एक एक धमनी में समाती चली गई.
फ़रिश्ते जश्न मना रहे हैं - जीत का जश्न.
-जब जब मैंने अपनी राह ख़ुद चुनी ,
जब जब मैंने उन्हें 'ना' कहा,
आग के दरिया में कूदना पड़ा
या उन्होंने अपने अग्निदंश से
-जब जब मैंने अपनी राह ख़ुद चुनी,
जब जब मैंने उन्हें 'ना' कहा
तब तब या तो मुझे धरती में समाना पडा
-मैंने कितने रावणों के नाभिकुंड सोखे
कितने दुर्योधनों के रक्त से केश सींचे
कितनी बार मैं महिषमर्दिनी से लेकर दस्युसुंदरी तक बनी
-पर उनका तेजाब आज भी अक्षय है
घृणा का कोश लिए फिरते हैं वे अपने प्राणों में ;
और जब भी मेरे होठों से निकलती है एक 'ना'
उलट देते हैं मेरे मुँह पर .
अन्धकार और यातना के नरक में .
आते हैं जागती आँखों डरावने सपने.
-यमदूतो ! मुझे नरक में तो जीने दो!!
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