ऋषभ की कविताएँ
शनिवार, 13 नवंबर 2010
पछतावा
हम कितने बरस साथ रहे
एक दूसरे की बोली पहचानते हुए भी चुपचाप रहे
आज जब खो गई है मेरी ज़ुबान
तुम्हारी सुनने और देखने की ताकत
छटपटा रहा हूँ मैं तुमसे कुछ कहने को
बेचैन हो तुम मुझे सुनने देखने को
हमने वक़्त रहते बात क्यों न की
1 टिप्पणी:
चंद्रमौलेश्वर प्रसाद
13 नवंबर 2010 को 10:47 pm बजे
यह तो बुढ़ापे का अहसास है सर जी :)
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यह तो बुढ़ापे का अहसास है सर जी :)
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