शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

दोहे : शरद पूर्णिमा

कालिंदी का कूल वह,
वह कदंब की डार.
मन-मधुवन में थिरकते 
अब भी बारंबार..

'राधा-राधा' टेरती 
जब वंशी की तान.
मन-पंछी तब-तब भरे 
चंदा और उड़ान.

१० अक्तूबर २००३  

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