ऋषभ की कविताएँ
शुक्रवार, 24 मार्च 2017
निषेधाज्ञा
चुप रहो,
वे सुन रहे हैं!
छिपे रहो,
वे देख रहे हैं!!
साँस मत लो,
उन्हें हमारा जीना पसंद नहीं!!!
... ... ...
उनकी तो
ऐसी की तैसी।
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