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शनिवार, 30 जुलाई 2011

दीवारों के कान सजग हैं

१.

''रूप रश्मियों से नहलाकर
मन की गाँठें खोल

यौवन की वेदी पर अर्पित
क्वाँरा हृदय अमोल

प्राणों पर चुंबन अंकित हों
जीवन में रस घोल!''

                ''दीवारों के कान सजग हैं
                 धीरे धीरे बोल!!''

२.

नभ के शब्द, धरा का सौरभ
हमको छुआ करें

दुग्ध स्नात हर मधुरजनी हो
मिल कर दुआ करें

चाँदी सी किरणें छू छू कर
मनसिज युवा करें

                 दीवारों के कान सजग हैं!
                 होते! हुआ करें!!

३.

नहीं द्वार पर धूप थिरकती
और सूर्य का भान नहीं

कमरे कमरे में सीलन है
दिवा रात्रि का ज्ञान नहीं

                 दीवारों के कान सजग हैं
                 और रोशनी डरी हुई!

ऐसे घर में कौन रहेगा
जिसमें रोशनदान नहीं?

22 नवम्बर 1981  



  

दीवारों के कान

१.
चूल्हा दीपक मौन हैं
आतंकित नादान
गुप्तचरों से सजग हैं
दीवारों के कान

२.
मन की बातें जान लो
नयनों से ही प्राण
ये बजमारे सजग हैं
दीवारों के कान 

३.
जब से जन्मे जेल में
द्वापर में भगवान
तब से सुनते सजग हैं
दीवारों के कान

४.
एक चील के पंख से
जब से गिरा विमान
ध्वनियाँ सुनते सजग हैं
दीवारों के कान 


22 नवंबर 1981     

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

नीम की ओट में

नीम की ओट में जो कई खेल खेले
चुभे पाँव में शूल बनकर बहुत दिन.
वासना के युवा पाहुने जो कुँवारे
बसे प्राण में भूल बनकर बहुत दिन.
           चुंबनों के नखों के उगे चिह्न सारे
           खिले देह में फूल बन कर बहुत दिन
स्वप्न वे सब सलोने कसम वायदे वे
उड़े राह में धूल बन कर बहुत दिन.
११/११/१९८१    

बुधवार, 27 जुलाई 2011

खिला गुलमुहर जब कभी

खिला गुलमुहर जब कभी द्वार मेरे
          याद तेरी अचानक मुझे आ गई

किसी वृक्ष पर जो दिखा नाम तेरा
          जिंदगी ने कहा - ज़िंदगी पा गई

आइने ने कभी आँख मारी अगर
           आँख छवि में तुम्हारी ही भरमा गई

चीर कर दुपहरी , छाँह ऐसे घिरी
          चूनरी ज्यों तुम्हारी लहर छा गई.

   ११/११/१९८१.      

छुआ चाँदनी ने

छुआ चाँदनी ने जभी गात क्वाँरा
नहाने लगी रूप में यामिनी

कहीं जो अधर पर खिली रातरानी
मचलने लगी अभ्र में दामिनी

           चितवनों से निहारा तनिक वक्र जो
           उषा-सांझ पलकों की अनुगामिनी

तुम गईं द्वार से घूँघटा खींचकर
तपस्वी जपे कामिनी-कामिनी

११/११/१९८१