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रविवार, 25 सितंबर 2011

अंबर की किरणें सतरंगी लेकिन धरती मटियाली है

अंबर की किरणें सतरंगी
लेकिन धरती मटियाली है
दिया बुझ गया उस खोली का
तुमने कंदीलें बाली हैं

पीले फूलों के भीतर से
झाँक सकोगे क्या जीवन तुम
दूर दूर तक मरुथल फैले
यहाँ ज़रा सी हरियाली है

इसी गली के नुक्कड़ पर तो
पंखों को रेहान धर तितली
कहीं पेट भरने की खातिर
सजा रही तन की थाली है

रतिपति ऋतुपति कहीं और जा
मधुऋतु   की बातें कर लेना
हर शंकर की हथेलियों पर
धरी हुई विष की प्याली है

अमलतास संन्यासी सहमा
सरसों का संसार सिहरता
गुलमोहर बंदूक लिए है
हर कीकर लिए दुनाली है

19 /12 /1981  


सोमवार, 5 सितंबर 2011

बहरे देश में

१.
हर तरफ अंधे धृतराष्ट्र  हैं,
गांधारियों ने
आँखों पर पट्टी बाँध रक्खी है.
महाभारतकार की कलम
रुकी हुई है,
संजय ने चुप्पी साध रक्खी है.
कौन सुने?
कौन बताए?
शरशय्या पर पड़े भीष्मपितामह की
प्यासी आवाजों का
बहरे देश में क्या हुआ?
                  क्या न हुआ?

२.
दुर्योधन से तो कोई शिकायत नहीं,
लेकिन वह एक युधिष्ठिर
जिसके चेहरे पर धर्मराज का मुखौटा चिपका है-
चौराहे चौराहे
अश्वत्थामा की
अनहुई मौत का
समाचार लिए घूमता है;
और उसका बड़ा भाई कर्ण
दानवीर होने का दंभ लिए
दूर-
कुरुक्षेत्र के उस छोर पर जा बैठा है .
किसी को कोई परवाह नहीं
भीष्मपितामह की  प्यासी आवाजों का
बहरे देश में क्या हुआ?
                  क्या न हुआ?

३.
उस पहले  महायुद्ध में जिसने
धरती फोड़कर गंगा निकाल दी थी
वह गांडीवधारी अर्जुन
वैरागी हो गया है;
सारा पौरुष भूल कर भीम
गोदाम में सो गया है.
अभिमन्यु
भूख के चक्रव्यूह से लड़ रहा है,
उत्तरा लकडियाँ बीन रही है
               सुबह चूल्हे के लिए,
               शाम चिता के लिए.
कृष्ण की
कौरवों से शिखर वार्त्ता चल रही है,
द्रौपदी
दु:शासन के टुकड़ों पर पल रही है.
कुंती
मोतियाबिंदभरी आँखों से देख रही है
कैसे उसके दूध का खून हुआ
और कैसे खून पानी हो गया?
कौन सुने?
कौन बताए?
शरशय्या पर पड़े भीष्मपितामह की
प्यासी आवाजों का
बहरे देश में क्या हुआ?
                  क्या न हुआ?

03 /12 /1981    

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

तू कच्ची कचनार

तू कच्ची कचनार राधिके! तू कच्ची कचनार
तू पागल बटमार कन्हैया! तू पागल बटमार

चंदा जैसा मुखड़ा तेरा , कोयल जैसे बोल
जा तू अपनी राह बटोही, करे न और मखौल
तू कोमल सुकुमार राधिके! तू कोमल सुकुमार 
तू है ठेठ गँवार कन्हैया! तू है ठेठ गँवार  

नागिन सी बलखाय किशोरी! हिरनी जैसी चाल 
साँझ भई अब मधुवन मोहे मत रोके नंदलाल!
सुन मेरी मनुहार राधिके! सुन मेरी मनुहार 
तू तो भया लबार कन्हैया! तू तो भया लबार 

चंद्र  किरण सा रूप सलोना, सोने जैसा गात 
मन को मोहे वंशीवाले! तेरी मीठी बात  
तू सुंदर सिंगार राधिके! तू सुंदर सिंगार 
तू चंचल बजमार! कन्हैया!! तू चंचल बजमार !!!

27 नवंबर 1981