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बुधवार, 14 अप्रैल 2010

स्वेच्छाचार

हाँ, मैं स्वेच्छाचारी हूँ.
उन्होंने मुझे हल में जोतना चाहा
मैंने जुआ गिरा दिया ,
उन्होंने मुझपर सवारी गाँठनी चाही
मैंने हौदा ही उलट दिया,
उन्होंने मेरा मस्तक रौंदना चाहा
मैंने उन्हें कुंडली लपेटकर पटक दिया,
उन्होंने मुझे जंजीरों में बाँधना चाहा
मैं पग घुँघरू बाँध सड़क पर आ गई!

अब वे मुझसे घृणा करते हैं
माया महाठगनी कहते हैं
मेरी छाया से भी दूर रहते हैं.
बेचारे परछाई से ही अंधे हो गए
हिरण्मय आलोक कैसे झेल पाते!

हाँ,मैं हूँ स्वेच्छाचारी!
मैंने अपने गिरिधर को चाहा
उसी का वरण किया
गली गली घोषणा की-
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई!

मेरे पति की सेज सूली के ऊपर है,री!
मुझे बहुत भाती है,
मैंने खुद जो चुनी है!!