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शुक्रवार, 3 जून 2011

मुलाकाती

मैं आज उससे मिलने गया था
बहुत लंबी लाइन थी
मैं भी लग गया
सुबह से शाम हो गई
पोस्टर देखता खड़ा रहा
वह चला भी गया
मुझसे चला नहीं जाता;
आक थू ! 

5 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

कोई कितनी प्रतीक्षा करे!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

आक़ थू ... वह तो मुक्का लाती काबिल निकला :)

Vijuy Ronjan ने कहा…

zindgi ki sachhayi ko bayan karti choti si kavita...mrigmarichika ke peeche kyun bhagna Mitr?

Kavita Vachaknavee ने कहा…

आपकी काव्य भाषा में ऐसे प्रयोग पढ़ने का अभ्यास नहीं है |

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

@मनोज कुमार

लोकतंत्र के फलीभूत होने की प्रतीक्षा में जाने कितने जीवन बीते जा रहे हैं बंधु!

@चंद्रमौलेश्वर प्रसाद

बेशक, प्रसाद जी, यह असंतोष ही विद्रोहियों को तैयार करता है और व्यवस्था उन्हें देशद्रोही बना डालती है.

@विजय रंजन

है तो मरीचिका ही; लेकिन आदरणीय, मृग अपनी प्यास का क्या करे!

@डॉ.कविता वाचक्नवी Dr.Kavita Vachaknavee

जी;आप सही हैं. पर कभी अटपटे बैन भी कहने का मन होता है.