खिला गुलमुहर जब कभी द्वार मेरे
याद तेरी अचानक मुझे आ गई
किसी वृक्ष पर जो दिखा नाम तेरा
जिंदगी ने कहा - ज़िंदगी पा गई
आइने ने कभी आँख मारी अगर
आँख छवि में तुम्हारी ही भरमा गई
चीर कर दुपहरी , छाँह ऐसे घिरी
चूनरी ज्यों तुम्हारी लहर छा गई.
११/११/१९८१.
याद तेरी अचानक मुझे आ गई
किसी वृक्ष पर जो दिखा नाम तेरा
जिंदगी ने कहा - ज़िंदगी पा गई
आइने ने कभी आँख मारी अगर
आँख छवि में तुम्हारी ही भरमा गई
चीर कर दुपहरी , छाँह ऐसे घिरी
चूनरी ज्यों तुम्हारी लहर छा गई.
११/११/१९८१.
4 टिप्पणियां:
चीर कर दुपहरी , छाँह ऐसे घिरी
चूनरी ज्यों तुम्हारी लहर छा गई.
बहुत खूबसूरत भाव ..अच्छी रचना
पढ़ते ही लगा था कि यह बीस पच्चीस साल पुरानी कविता होगी! ऐसे भाव तो तभी आ सकते हैं ना :)
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
सराहना हेतु आभार.
@ चंद्रमौलेश्वर प्रसाद
अब मैं क्या कहूँ भला - मैंने तो विधिवत लेखन तिथि घोषित की है. कविता बचकानी लगी क्या?
पुरानी डायरी जर्जर हो रही है. सोचा, यहाँ लिख कर रख लूँ.
बहुत सुंदर है....
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