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शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

नीम की ओट में

नीम की ओट में जो कई खेल खेले
चुभे पाँव में शूल बनकर बहुत दिन.
वासना के युवा पाहुने जो कुँवारे
बसे प्राण में भूल बनकर बहुत दिन.
           चुंबनों के नखों के उगे चिह्न सारे
           खिले देह में फूल बन कर बहुत दिन
स्वप्न वे सब सलोने कसम वायदे वे
उड़े राह में धूल बन कर बहुत दिन.
११/११/१९८१    

4 टिप्‍पणियां:

Suman ने कहा…

स्वप्न वे सब सलोने कसम वायदे वे
उड़े राह में धुल बनकर बहुत दिन !
सच में लाजवाब ........

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

हाय! कहां गए वो दिण॥ नीम पर आपकी नीम और पिताजी वाली कविता याद आ गई॥

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

@ Suman

धन्यवाद सुमन जी.

@चंद्रमौलेश्वर प्रसाद

बेशक नीम मेरी अन्तश्चेतना में कहीं गहरे धँसा हुआ है. इसलिए अनेक प्रिय कल्पनाओं का आस्थान भी है.

Amrita Tanmay ने कहा…

बहुत खूब ..बहुत सुन्दर