१.
चूल्हा दीपक मौन हैं
आतंकित नादान
गुप्तचरों से सजग हैं
दीवारों के कान
३.
जब से जन्मे जेल में
द्वापर में भगवान
तब से सुनते सजग हैं
दीवारों के कान
चूल्हा दीपक मौन हैं
आतंकित नादान
गुप्तचरों से सजग हैं
दीवारों के कान
२.
मन की बातें जान लो
नयनों से ही प्राण
ये बजमारे सजग हैं
दीवारों के कान
३.
जब से जन्मे जेल में
द्वापर में भगवान
तब से सुनते सजग हैं
दीवारों के कान
४.
एक चील के पंख से
जब से गिरा विमान
ध्वनियाँ सुनते सजग हैं
दीवारों के कान
22 नवंबर 1981
1 टिप्पणी:
वाह ! बहुत ही सुन्दर लिखा है आप ने
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