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रविवार, 2 अक्टूबर 2011

गांधी जयंती पर 12 दोहे




1.
दुनिया कब से लड़ रही , भर प्राणों में क्रोध
नया युद्ध तुमने लड़ा, सविनय किया विरोध
2 .
दुनिया लडती क्रोध से, करती अत्याचार
भारत लड़ता सत्य ले, बाँट बाँट कर प्यार
3 .
उनके हाथों में रहे, सब खूनी हथियार
पर तुमने त्यागे नहीं, सत्य-अहिंसा-प्यार
4 .
अड़े सत्य पर तुम सदा, दिया न्याय का साथ
सत्ता-बल के सामने, नहीं झुकाया माथ
5 .
निर्भय होने का दिया, तुमने ऐसा मंत्र
जगा देश का आत्म-बल, होकर रहा स्वतंत्र
6 .
मिले प्रेम के युद्ध में, भले जीत या हार
तुमने सिखलाया हमें,शस्त्रहीन प्रतिकार
7.
सत्ता,प्रभुता,राजमद, शोषण के पर्याय
नमक बना तुमने दिया, जन-संघर्ष उपाय
8 .
क्या न किया अंग्रेज़ ने,  क्या न गिराई गाज
मगर न कुचली जा सकी, जनता की आवाज़
9
सच्चा नायक तो वही, कथनी-करनी एक
वरना तो झूठे यहाँ, नेता फिरें अनेक
10 .
दौड़ रहे पागल हुए, महानगर की ओर
गांधी की वाणी सुनो, चलो गाँव की ओर
11 .
अगर कहीं कोई मरे, ऋण से दबा किसान
यह गांधी के देश में, उचित नहीं, श्रीमान
12 .
दुनिया बनती जा रही, मंडी औ' बाज़ार
इसे बनाओ, मित्रवर, प्रेमपूर्ण परिवार

29 /9 /2011 //रात्रि 01 :45 .
[ दूरदर्शन (सप्तगिरि चैनल) के निमित्त]

7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

दिवस विशेष पर बहुत उम्दा दोहे..बधाई.

राधा कृष्ण मिरियाला ने कहा…

नमस्ते गुरु जी !!
गाँधी जयंती की शुभ-कामनाएँ!!!

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

बहुत अच्‍छे दोहे। चलो गाँव की ओर। हम तो तैयार है भाई।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

लगता है आज न तो क्रोध न विरोध और ना ही सत्य, अहिंसा आदि कारगर है। जनता हैरान है कि क्या करें, कौन सा हरबा चलायें!!!

santha sundari.r ने कहा…

बहुत ही बढ़िया दोहे थे .आप इतने सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए इतने गंभीर विचार कैसे प्रकट कर देते हैं,यह मुझे हमेशा हैरान कर देता है.और मैं जानती हूँ कि सरल शब्दों में कहना ही सबसे मुश्किल काम है.हमेशा की तरह मुझे तो आपकी कविता सबसे अच्छी, प्रासंगिक ,लगी.मुझे पहले बताने के लिए धन्यवाद. आप इसे अपने ब्लॉग में दे रहे हैं ना?

अभिवादन और बधाई.

शांता सुन्दरी (doordarshan par dekhane ke baad)

neeraj tripathi ने कहा…

बहुत बढ़िया .. अच्छे लगे दोहे ।

Sunil Kumar ने कहा…

बहुत ही बढ़िया दोहे .बधाई......