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रविवार, 20 फ़रवरी 2011

लोकतंत्र की जय

उस दिन गाँव वालों की आँख कुत्तों की आवाज़ से खुली.
दरअसल गाँव में एक हाथी आ गया था;
और कुत्ते भौंकने लगे थे.

औरतों ने हाथी की आरती उतारी;
कुत्ते भौंकते रहे.

बच्चों ने हाथी को केले खिलाए,
भरपूर मस्ती की;
कुत्ते भौंकते रहे.

कुछ युवक हाथी को मैदान में ले गए,
खूब कंदुक क्रीडा की;
कुत्ते भौंकते रहे.

इसी तरह रात हो गई,
नाच-गाना हुआ,
हाथी ने भी ठुमके लगाए;
निहाल हो गया सारा गाँव;
कुत्ते भौंकते रहे.

अगले दिन भी गाँव वालों की आँख कुत्तों की आवाज़ से खुली.
हाथी गाँव से चला गया था;
कुत्ते अब भी भौंक रहे थे.
दरअसल कुत्ते पागल हो चुके थे.

तब से गाँव-गाँव जाता है हाथी;
और भौंकते रहते हैं कुत्ते.
हाथी को कुत्तों से कोई शिकायत नहीं.
अपनी-अपनी समझ,
अपना-अपना धरम;
लोकतंत्र की जय!

19 / 2 / 2005 .

1 टिप्पणी:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

हर एक का अपना स्वभाव... हाथी गीत गाता चलता रहता है...चांदनी रात में कुत्ते भोंकते रहते है...लोकतंत्र का यह कारवां चलता रहेगा :)