एक :
दो :
तीन :
चार :
पाँच :
1997
शोर है, हंगामा है;
लोग
ताबड़तोड़ पीट रहे हैं
मेजें
और सोच रहे हैं
हिंदुस्तान
बहरा है!
दो :
सडकों पर
उतर आई है भीड़,
जनता
नक्कारे पीट रही है,
पूछता है कबीर-
बहरे हो गए क्या
खुदा
लोकतंत्र के!
तीन :
दीवारों ने सुन ली,
तारों ने भी सुन ली,
केवल तुमने नहीं सुनी
मेरे मन की बात;
आखिर
तुम ठहरे
जन्मों के बहरे!
चार :
बहुत दिन
सहा मैंने,
सुनती रही चुपचाप,
झेलती रही
मारकाट सारी,
पर तुम तो उतारू हो गए
मेरी पहचान मेटने पर;
चिल्लाओ मत,
बहरी नहीं हूँ मैं;
और आज से
गूँगी भी नहीं!
पाँच :
धूल, धुआँ, गुब्बार,
तेज़ाब ही तेज़ाब,
रेडियोधर्मी विकिरण -
तपता हुआ
ब्रह्माण्ड का गोला;
फटने लगे हैं
अंतरिक्ष के कानों के परदे,
चीखती है निर्वसना प्रकृति
......और......
दिशाएँ बहरी हैं!
1997
8 टिप्पणियां:
जिस देश का नेता बहरा है
जिस धर्म का खुदा बहरा है
जो समाज सुनता है चुपचाप
कैसे न कहें हिंदुस्तान बहरा है!
Aapki chhoti kavitayen kitani bari baaten aasani se kah gayi ....ati sundar. aabhar
नमस्कार सर.
आशा है बहरों के कान जरूर
इन बहरेपन की 5 कविताओं से
काम करने लगेंगे. सुनने लगेंगे.
बहरेपन पर मेरी एक कविता प्रस्तुत है. आशा है आपको पसंद आएगी:-
लोग इतना चिल्लाते हैं?
मैं बहरा हूँ?
धीरे से बोलो
फुस-फुसाओ
मेरे कान नहीं
मेरा मन
हर सवाल का
तुम्हारे, जवाब देगा
तुम सुनोगे?
- बालाजी
दीवारों ने सुन ली,
तारों ने भी सुन ली,
केवल तुमने नहीं सुनी
मेरे मन की बात;
आखिर
तुम ठहरे
जन्मों के बहरे!
करारा व्यंग्य ....आपका आभार
कान ना सही,
गर्दन तो होगी
जिसे मरोड़ सकूँ?
kavita madhyam hai ek vaktwya ki aur aap poori tarah isme safal huye Rishabh ji...bahut hi prabhavi...
शोर है , हंगामा है
लोग ताबड़-तोड़ पीट रहे हैं
मेजें ....
और सोच रहे हैं ...
हिन्दुस्तान बहरा है .....
वाह बहुत खूब ......!!!
bahut khoobsurat abhivyakti hai, 3rd and 4th........bahut sunder, main behri nahi aur goongi bhi nahin
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