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मंगलवार, 17 जनवरी 2023

तुमको ख़त में क्या-क्या लिक्खूँ?

 तुमको ख़त में क्या-क्या लिक्खूँ?

कब-कब हँस-हँस रोया, लिक्खूँ?


तारे गिन-गिन रातें काटीं

भोर  हुई तो सोया, लिक्खूँ? 


नेह नीर से सींच-सींच कर 

यह अक्षय वट बोया, लिक्खूँ? 


एक फूल रूमाल कढ़ा जो

ओसों खूब भिगोया, लिक्खूँ? 


दिल से दिल के इस सौदे में 

क्या पाया क्या खोया, लिक्खूँ? 


कैसे राम! तिरे वह तल पर 

तुमने जिसे डुबोया, लिक्खूँ?


मधु अपराध किया जो पल ने

वह जन्मों ने ढोया, लिक्खूँ?


अँजुरी-अँजुरी पानी छाना 

फिर भी रेत सँजोया, लिक्खूँ?


साँसों  की नश्वर माला में 

मोती दिव्य पिरोया, लिक्खूँ? 


चमक उठा शुभ नाम तुम्हारा;

मन आँसू से धोया, लिक्खूँ?

                         (2002)

3 टिप्‍पणियां:

Admin ने कहा…

Bahut he badiya!

Regards,
Pawan
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RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

धन्यवाद।

meenu kaushik ने कहा…

अद्भुत ! वेदना की एक-एक पंक्ति लाज़वाब 👌👌