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बुधवार, 27 जुलाई 2011

छुआ चाँदनी ने

छुआ चाँदनी ने जभी गात क्वाँरा
नहाने लगी रूप में यामिनी

कहीं जो अधर पर खिली रातरानी
मचलने लगी अभ्र में दामिनी

           चितवनों से निहारा तनिक वक्र जो
           उषा-सांझ पलकों की अनुगामिनी

तुम गईं द्वार से घूँघटा खींचकर
तपस्वी जपे कामिनी-कामिनी

११/११/१९८१  

5 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

तपस्वी जपे कामिनी-कामिनी
उस जुलमी तारों से भरी चांदनी :)

मनोज कुमार ने कहा…

अहा! बहुत सुंदर।

Suman ने कहा…

bahut sunder payari-si rachna.....

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

@संगीता स्वरुप ( गीत )
आभारी हूँ.

@चंद्रमौलेश्वर प्रसाद
चाँदनी को मुड के देखने का अपना ही आनंद है न प्रभो?

@ मनोज कुमार
धन्यवाद,मित्र!

@ Suman
शुक्रिया.