छुआ चाँदनी ने जभी गात क्वाँरा
नहाने लगी रूप में यामिनी
कहीं जो अधर पर खिली रातरानी
मचलने लगी अभ्र में दामिनी
चितवनों से निहारा तनिक वक्र जो
उषा-सांझ पलकों की अनुगामिनी
तुम गईं द्वार से घूँघटा खींचकर
तपस्वी जपे कामिनी-कामिनी
११/११/१९८१
नहाने लगी रूप में यामिनी
कहीं जो अधर पर खिली रातरानी
मचलने लगी अभ्र में दामिनी
चितवनों से निहारा तनिक वक्र जो
उषा-सांझ पलकों की अनुगामिनी
तुम गईं द्वार से घूँघटा खींचकर
तपस्वी जपे कामिनी-कामिनी
११/११/१९८१
5 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना
तपस्वी जपे कामिनी-कामिनी
उस जुलमी तारों से भरी चांदनी :)
अहा! बहुत सुंदर।
bahut sunder payari-si rachna.....
@संगीता स्वरुप ( गीत )
आभारी हूँ.
@चंद्रमौलेश्वर प्रसाद
चाँदनी को मुड के देखने का अपना ही आनंद है न प्रभो?
@ मनोज कुमार
धन्यवाद,मित्र!
@ Suman
शुक्रिया.
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