ओस प्यासी, गुलाब प्यासे हैं।
नींद प्यासी है,ख्वाब प्यासे हैं।।
रेत का तन तप चुका कितना,
कितनी पी लें शराब प्यासे हैं।।
जब से ढाला गया इन ओठों को,
नींद प्यासी है,ख्वाब प्यासे हैं।।
रेत का तन तप चुका कितना,
कितनी पी लें शराब प्यासे हैं।।
जब से ढाला गया इन ओठों को,
उस ही दिन से, जनाब, प्यासे हैं।।
मोर ये, चातक ये, पपीहे ये,
इनको दीजे जवाब, प्यासे हैं।।
कब के जागे हैं नयन दीवाने,
अब तो उलटो नक़ाब, प्यासे हैं।।
कहिए इक़बाल से, फ़िराक़ों से,
हम पे लिख दें क़िताब प्यासे हैं।।
मोर ये, चातक ये, पपीहे ये,
इनको दीजे जवाब, प्यासे हैं।।
कब के जागे हैं नयन दीवाने,
अब तो उलटो नक़ाब, प्यासे हैं।।
कहिए इक़बाल से, फ़िराक़ों से,
हम पे लिख दें क़िताब प्यासे हैं।।
[1983]
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें