ऋषभ की कविताएँ
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रविवार, 21 जुलाई 2013
क्षणिक
इंद्र के वज्र सा मेरा अस्तित्व
अभी कौंधा
और
लो, विलीन हो चला
पलक झपकते हो गई प्रलय
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