मैं बुझे चाँद सा
अन्धेरे में छिपा हुआ बैठा था
सब रागिनियाँ डूब चुकी थीं
प्रलय निशा में
तभी जगे तुम
दूर सिंधु के जल में झलमल
और बाँसुरी ऐसी फूँकी
अंधकार को फाँक फाँक में चीर चीर कर
सातों सुर बज उठे
सात रंगों वाले
बुझे चाँद में एक एक कर
सभी कलाएँ थिरक उठीं!
4 टिप्पणियां:
बेहद सुंदर रचना .....
यही है जीवन का क्रम -चाँद की कलाओं के समान पुनर्नवीन होना !
jeevan ke charodo ko chand se paribhasit kiya aap ,sunder rcahna
http://blondmedia.blogspot.in/
अंधकार को फांक फांक में चीर चीर कर 'बहुत अच्छा प्रयोग ,लिखते रहें शुभ कामना
एक टिप्पणी भेजें