ऋषभ की कविताएँ
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शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010
मेरा पक्ष
मैंने प्रण किया था-
तुम्हारा साथ दूँगा
भूख के खिलाफ हर युद्ध में.
मैंने उठाई थी बंदूक-
बुर्ज पर टँगी तुम्हारी रोटी
उतार लाने को.
आज तुम्हारे हाथों में
खून की रोटी है
और तुम खेत में बारूद उगाने लगे हो
अनाज की जगह.
यार मेरे , इतना तो बता -
अब मैं किसे मारूँ!
गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010
कंगारू
मैं कंगारू हूँ.
मेरी छाती में एक जेब है,
जेब में एक बच्चा.
बच्चे को हर हाल में बचाना है मुझे.
वे मुझे बंदर समझते हैं
और मेरे बच्चे को लाश.
कैसे सौंप दूँ उन्हें?
बच्चे को हर हाल में बचाना है मुझे!
बुधवार, 27 अक्टूबर 2010
असमंजस
मैंने रात से ज़िद की -
ठहर जा
कुछ घड़ी और.
और वह चली गई
बिना ठहरे
कुछ घड़ी पहले.
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