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गुरुवार, 5 जनवरी 2012

भाषाहीन SANS LANGUAGE

SANS LANGUAGE
-Rishabha Deo Sharma
translated from hindi by : ELIZABETH KURIAN 'MONA'

My father wished to speak to me many times
I was busy learning many languages;
Never did I listen to his sorrows
Never did I share his worries.
I could not understand
What was in his mind.

Today I have time to spare
But alas, father is no more;
On his desk, I found a letter.

I am unable to read that message
God knows in which language
It had been written;
Not even a scholar could decipher.

Confused, I wander in a jungle of voices;
I will have to forget all languages
In order to read father’s letter.


 भाषाहीन

मेरे पिता ने बहुत बार मुझसे बात करनी चाही
मैं भाषाएँ सीखने में व्यस्त थी
कभी सुन न सकी उनका दर्द
बाँट न सकी उनकी चिंता
समझ न सकी उनका मन

आज मेरे पास वक़्त है
पर पिता नहीं रहे
उनकी मेज़ से मिला है एक ख़त

मैं ख़त को पढ़ नहीं सकती
जाने किस भाषा में लिखा है
कोई पंडित भी नहीं पढ़ सका

भटक रही हूँ बदहवास आवाजों के जंगल में
मुझे भूलनी होंगी सारी भाषाएँ
पिता का ख़त पढ़ने की खातिर

गोलमहल ROUND PALACE

ROUND PALACE

Unbearable stench,
Dampness and decay
Fill the round palace;
Communication with the sun
Has broken down.

Parasites occupying chairs
Push their weight
Into the earth;
They chew up pages
Of a bulky book.

Closed are the doors;
The rubble reaches
Up to the skylights;
Bats make circuit
Day and night.

Let it be buried
In the ground
And be transformed
Into compost.


-Dr. Rishabha Deo Sharma

(Translated by Elizabeth Kurian ‘Mona’)



['गोलमहल' कई वर्ष पूर्व लिखी मेरी एक छोटी कविता है - एक बंध के गीत जैसी. व्यंग्य मुद्रा के कारण इसे प्रायः पसंद किया जाता है - मुझे तो खैर प्रिय है ही. कभी साहित्य अकादेमी के बहुभाषी कवि सम्मलेन के लिए अपने डॉ. गोपाल शर्मा जी - आजकल कहीं ईस्ट अफ्रीका में भाषाविज्ञान के प्रोफ़ेसर हैं - ने अंग्रेजी में अनुवाद किया था. अब पुनः इसी कविता का एक और अंग्रेजी अनुवाद हैदराबाद की बहुभाषी कवयित्री सुश्री एलिजाबेथ कुरियन 'मोना' ने किया है  'हैदराबाद लिटरेरी फेस्टिवल -२०१२' के लिए. मोना जी के अनूदित पाठ के बाद यहाँ प्रस्तुत है मेरा मूल पाठ और शर्मा जी का पहले का अनूदित पाठ.]

गोल महल
गोल महल में
भारी बदबू,
सीलन औ' अवसाद;
धूप से
टूट गया संवाद .


कुर्सीजीवी कीट
बोझ से
धरती दबा रहे हैं;
मोटी एक किताब,
उसी के
पन्ने चबा रहे हैं;


दरवाज़े हैं बंद
झरोखों तक
मलबे की ढेरी;
दिवा रात्रि का आवर्तन है
चमगादड़ की फेरी;


इसको दफ़न करें मिटटी में
बन जाने दें -
खाद ! o
The round-about Palace
uncontrolable stench,grimmace and uncouth
In the round -about palace
No dialogue with the sun .
parasites on seats and chairs
suck the mould.
And chew
the pages of a heavy book.
doors,windows shut ,closed
No outside air fresh or free reach
mud filled upto the actic.

there is a cycle of day and night
the bats come and go
Let it decay and die
the very compost for fertility!
(translated by Dr. Gopal Sharma)

रविवार, 1 जनवरी 2012

२०१२ की शुभकामनाओं के साथ

१.
दुलहिनो!
मंगलाचरण गाओ - नया वर्ष आया है.
मैंने अपने हाथ से रंगोली सजाई है,
मंगल चौक पूरा है,
पूर्णकुंभ संजोया है.
आरती उतारो नए पाहुने की.
संभावनाओं के बंदनवार बाँध दिए हैं मैंने;
स्वागत गीत उठाओ न!

२.
हम अलाव तापते ऊंघ रहे थे
वह चुपके से आ गया दबे पाँव आधी रात
ठिठुरता खड़ा रहा शायद कुछ देर
और फिर चुपके से घुस आया मेरी बुक्कल में
पूरी आँखें खोल ताप रहा है वह भी अलाव

३.
यार नए साल!
तू इतनी ठंड  में क्यों आता है
शीत लहर में हम गरीबों को मौत के घाट उतारता हुआ?
लेकिन खैर जब आ ही गया है
तो ले यह ताज़ा गरमागरम गुड खा
घुटनों में जान पड़ जाएगी
बारह महीने के सफर के लिए.

वैसे यार तू इतनी ठंड में आता क्यों है?
वसंत में आता तो खट्टी मीठी पच्चडी खाता!