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शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2023

दर्द की कोकिला बोली

हमारी आह के काँधे, 

तुम्हारी चाह की डोली 

तुम्हारी माँग में, सजनी!

हमारे रक्त की रोली


मिटाए भी न मिट पाईं

तुम्हारे मन की बालू से

हमारी रूप रेखाएँ

बहुत धो ली, बहुत छोली


प्रथम अनुभव, प्रथम छलना 

कठिन अनुभव, कठिन छलना 

लुटी किस चक्रवर्ती से

तापसी बालिका भोली


जान पहचान थी जिससे

उम्र आसान थी जिससे 

छुड़ाकर भीड़ में अँगुली

गया वह दूर हमजोली


सहमकर और शरमाकर

तड़पकर और लहराकर 

'किया है प्यार मैंने तो'

दर्द की कोकिला बोली


#पुरानी_डायरी से

(नई दिल्ली : 7 अगस्त, 1984)

मुझको मेरा गीत चाहिए

मुझको मेरा गीत चाहिए

वही मुक्त संगीत चाहिए


        मेरे मथुरा-ब्रज-वृंदावन

        कालिंदी के तट रहने दो 

        कुरुक्षेत्र मत करो देश को

        यों न रक्त-सरिता बहने दो


रक्तजीवियों के जंगल में 

दूध नहाया मीत चाहिए


        मेरे उषा-सूक्त के गायन 

        मुझको गीता-गायत्री दो

        मेरा गौतम, मेरा गांधी

        मुझको सीता-सावित्री दो


जो विषधर को गंगा कर दे 

शिवशंकर की प्रीत चाहिए


        मत आँगन के बीच उगाओ

        नागफनी के काँटे ज़हरी

        शर संधाने  सिंधु-तीर पर 

        तत्पर मर्यादा के प्रहरी


मेरे नक्शे के त्रिकोण को

फिर से रघुकुल रीत चाहिए 000


#पुरानी_रचना (लखनऊ: 2 जून, 1984)