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शुक्रवार, 28 सितंबर 2012
बुधवार, 12 सितंबर 2012
जिजीविषा
पंख जल गए, विवश पखेरू फिर भी खिसक रहा है
इच्छाएँ गिर गईं, प्राण पर अब भी सिसक रहा है
देह जूझती है अंतिम रण साँस-साँस तिल-तिल भर
रोम-रोम में धँसा केकड़े का नख कसक रहा है
12/9/2012 : 22-45.
इच्छाएँ गिर गईं, प्राण पर अब भी सिसक रहा है
देह जूझती है अंतिम रण साँस-साँस तिल-तिल भर
रोम-रोम में धँसा केकड़े का नख कसक रहा है
12/9/2012 : 22-45.
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