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सोमवार, 19 नवंबर 2012

दस दोहे : संदर्भ दीपावली का

१.
विरह अमावस साँपनी
रही साँस को लील
तुम छू लो तो जल उठे
प्राणों का कंदील
२.
डर लगता अँधियार में
आओ तनिक समीप
रोम रोम में बल उठें
पिया! प्रेम के दीप 
३.
होंठ फुलझड़ी हो गए
आँखें हुईं अनार
पोर पोर दीपावली
जगमग यह शृंगार
४.
मैं जलता दीवा बनी
निशि दिन देखूँ राह
पाहुन! आओ तो कभी
गहो हमारी बाँह
५.
छुआ ललक से आपने
जिस पल मेरा गात
झलमल झलमल मैं हुई
दीपों भरी परात
६.
इसी अमावस जगेंगे
मेरे सोए भाग
मैं पगली नचती फिरूँ
धरे हथेली आग 
७.
आओ अब मिल लो गले
करो क्रोध का त्याग
जले प्रेम का दीप फिर
जगे ज्योति का राग
८.
चौदह बरसों से पड़ा
सूना घर का द्वार
आज उतारूँ आरती
चौमुख दियना बार 
९.
राजमहल में माँ जली
पूरे चौदह साल
सोच सोच कैसे कहाँ
जलता मेरा लाल
१०.
भटका चौदह साल तक
लौटा तेरे द्वार
माँ ने माथा चूम कर
मिटा दिया अँधियार .
हैदराबाद, १८ नवंबर २०१२