ऋषभ की कविताएँ
फ़ॉलोअर
शुक्रवार, 23 सितंबर 2016
प्रफुल्लता
प्राण की अमराइयों में
प्रीत का कोकिल
बोल उट्ठा ...
बौर रोमों में
उठे हैं खिल
31 मार्च, 2000
मैं उजला होने आया...
मैं उजला होने आया था,
जग ने और कलुष में धोया!
जिसको धोने की खातिर मैं,
दिवस-रैन जन्मों तक रोया!!
31 मार्च, 2000
14:00
सोचा था आकाश बनूँगा ...
सोचा था, आकाश बनूँगा, पर पाषाण बना
पुष्प वाटिका जली, यज्ञ-मंडप श्मसान बना
प्रभुओं की स्तुति छोड़, तनिक जो दोष बताया तो
कल तक का भगवान, आज पापी शैतान बना
मैंने जिसको छुआ कभी वह, पानी अमरित था
पर अपनों का अमरित दान, मुझे विष पान बना
30 मार्च, 2004.
रात्रि 02:20
बुधवार, 21 सितंबर 2016
सृजन का पल
मंगलवार, 20 सितंबर 2016
प्यार का पर्याय पूछा सिंधु से कल शाम
Dr. Rishabha Deo Sharma reciting his famous geet "Pyar ka paryaay pucha Sindhu se kal shaam" in Vishva Vatsalya Manch meeting in Hyderabad on Sept. 19th 2016.
सवैया, दोहे और प्रेमगीत
Dr. Rishabha Deo Sharma reciting his poem in Vishva Vatsalya Manch meeting in Hyderabad on Sept. 19th 2016
बहरापन : पाँच छोटी कविताएँ
Dr. Rishabha Deo Sharma addressing members of Kadambini Club and reciting his poems in Kadambini Club Sept 2016 meeting
शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016
'सार्थक - 4' में 7 स्त्रीपक्षीय कविताएँ
नई पोस्ट
पुराने पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)