फ़ॉलोअर

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

रक्त स्नान

हम तुम्हारी राह में कालीन बन बिछते  गए.
और अपनी कीच से तुम सानते हमको गए..
हमने तुम्हारे पाप को भी शीश पर अपने चढ़ाया.
किंतु  तुमने तो हमेशा दीप औरों का बुझाया..
आज खाली पेट नंगी पीठ हम दर पर खड़े.
आपके संकेत पर लाठी पडीं कोड़े पड़े..
न्यायकर्ता क्या बताएँ भूख का  कर्तव्य क्या?
अब अगर हम हाथ में बंदूक लें अपराध क्या?

आज तक हम ही तुम्हें निज रक्त पर पोसा किए.
अब तुम्हारे रक्त से जन-द्रोपदी का स्नान हो!!

शनिवार, 13 नवंबर 2010

भाषाहीन

मेरे पिता ने बहुत बार मुझसे बात करनी चाही 
मैं भाषाएँ सीखने में व्यस्त थी 
कभी सुन न सकी उनका दर्द 
बाँट न सकी उनकी चिंता 
समझ न सकी उनका मन 

आज मेरे पास वक़्त है 
पर पिता नहीं रहे 
उनकी मेज़ से मिला है एक ख़त 

मैं ख़त को पढ़ नहीं सकती 
जाने किस भाषा में लिखा है 
कोई पंडित भी नहीं पढ़ सका 

भटक रही हूँ बदहवास आवाजों के जंगल में 
मुझे भूलनी होंगी सारी भाषाएँ 
पिता का ख़त पढ़ने  की खातिर  

पछतावा

हम कितने बरस साथ रहे 
एक दूसरे की बोली पहचानते हुए भी चुपचाप रहे 

आज जब खो गई है मेरी ज़ुबान
तुम्हारी सुनने और देखने की ताकत 
छटपटा रहा हूँ मैं  तुमसे कुछ कहने को 
बेचैन हो तुम मुझे सुनने देखने को 

हमने वक़्त रहते बात क्यों न की  

रविवार, 7 नवंबर 2010

अबोला

बहुत सारा शोर घेरे रहता था मुझे
कान फटे जाते थे
फिर भी तुम्हारा चोरी छिपे आना
कभी मुझसे छिपा नहीं रहा
तुम्हारी पदचाप मैं कान से नहीं
दिल से सुनता था

बहुत सारी चुप्पी घेरे रहती है मुझे
मैं बदल गया हूँ एक बड़े से कान में
पर कुछ सुनाई नहीं देता
तुम्हारे अबोला ठानते ही
मेरा खुद  से बतियाना भी ठहर गया
वैसे दिल अब भी धड़कता है

और कब तक

मैं लोकतंत्र में विश्वास रखता हूँ
किसी की आज़ादी में कटौती मुझे स्वीकार नहीं

उसे बंदूक चलाने की आज़ादी चाहिए
मेरी खोपड़ी उड़ाने के लिए

मेरे हाथ बँधे हैं, उसके खुले

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

पहले तीन दीवे

सुनो!
एक दीवा  दरवाज़े पर ज़रूर रख देना.

और हाँ,
एक दीवा  रास्ते के अंधे मोड़ पर भी.

तब तक मैं
आकाशदीप बाल आता हूँ.

!!ज्योतिपर्व मंगलमय हो!!




सोमवार, 1 नवंबर 2010

प्रेतानुभूति

अभी उस रात मैं मर गया 

घूमते घामते फिर अपने नगर गया 

मेरा सबसे प्रिय मित्र सुख की नींद सोया था, 
मुझे अच्छा लगा 
मुझे शांति मिली 

धूप  चढ़े मेरी खिड़की में चावल चुगने आता कबूतर 
बहुत बेचैन दिखा 
चोंच घायल कर ली थी तस्वीर से टकरा कर,  
मुझे बहुत खराब लगा 
मुझे कभी शांति नहीं मिलेगी 

शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010

मेरा पक्ष

मैंने प्रण किया था-
तुम्हारा  साथ दूँगा
भूख के खिलाफ हर युद्ध में.
मैंने उठाई थी बंदूक-
बुर्ज पर टँगी तुम्हारी रोटी
उतार लाने को.

आज तुम्हारे हाथों में 
खून की रोटी है 
और तुम खेत में बारूद उगाने लगे हो 
अनाज की जगह.

यार मेरे , इतना तो बता -
अब मैं किसे मारूँ! 

गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

कंगारू

मैं कंगारू हूँ.
मेरी छाती में एक जेब है,
जेब में एक बच्चा.
बच्चे को हर हाल में बचाना है मुझे.

वे मुझे बंदर समझते हैं
और मेरे बच्चे को लाश.
कैसे सौंप दूँ उन्हें? 
बच्चे को हर हाल में बचाना है मुझे!

बुधवार, 27 अक्टूबर 2010