फ़ॉलोअर

मंगलवार, 26 अप्रैल 2022

3 बाल कविताएँ

 3 बाल कविताएँ 

(रचना काल: 1989/ स्थान:ऊधमपुर) 


(वैसे ये कविताएँ नहीं है। 

नन्हें बेटे के नाम पिता के 3 पत्र हैं। 

1989 की डायरी में दिख गए। बस!)



ह से हनी, द से दादा 

याद बहुत पापा को आता


क से कुमार, ल से लव

पापा बहुत अकेले अब


रक्खी है तेरी तलवार 

ही-मैन बन के राक्षस मार


हनूमान की गदा खड़ी है 

रॉली-पॉली पास पड़ी है


यह जोकर कितना उदास है

सारी बिखरी हुई ताश है


हाथी भी गुमसुम बैठा है 

बन्दर गुस्से से ऐंठा है


ऐरोप्लेन चुप खडा हुआ है

हैलीकोप्टर अड़ा हुआ है


लात मारती है साईकल 

धुआँ उगलती है राईफल


धूल जम गई है खिड़की में 

किसे लगाऊँ अब झिड़की मैं


किसके सिर पर धौल जमाऊँ 

मैं किससे बैठक लगवाऊँ


इक टुकड़ा अब किसे खिलाऊँ

किससे मैं इक टुकड़ा खाऊँ


किसे कहानी कथा सुनाऊँ

किसे हँसाऊँ, किसे रुलाऊँ


किससे कहूँ कि दे दे किस्सी

किससे कहूँ कि ले ले किस्सी


किसको डाँटूँ किससे झगडूँ

किस दाढ़ी से दाढ़ी रगडूँ


मुझको भूल नहीं जाना तुम

सबको खूब हँसाना तुम


तेरी हँसी, हँसी पापा की 

तेरी खुशी, खुशी पापा की


पापा बहुत दूर रहते हैं

पापा बहुत दर्द सहते हैं


पापा जल्दी ही आएँगे!

पापा बहुत प्यार लाएंगे!!


(ऊधमपुर से: अगस्त 1989 )




ग्रीन हरे रंग को कहते है

पापा ऊधमपुर रहते हैं


रेड कलर के माने लाल

मोनू खाता चावल दाल


ब्लैक ब्लैक काला काला

बाबा जी जपते माला


नारंगी होता ओरेंज

सोनू करता कपड़े चेंज


व्हाइट की संज्ञा सफेद है

दादा के दाँत में छेद है


यैलो होता पीला पीला 

बिस्तर को मत करना गीला


आसमान ब्लू है नीला है 

जूता थोड़ा सा ढीला है


ग्रे का अर्थ सलेटी है

दीदी सबकी प्रिय बेटी है


ब्राउन रंग  भूरा होता है

बिट्टू दिन में भी सोता है


वाइलट होता बैंगन जैसा 

रोज़ बैंक में डालो पैसा


माँ से सुनना रोज कहानी

कौन था राजा कौन थी रानी


इस कविता को भूल न जाना 

मम्मी जी को खूब सुनाना


(ऊधमपुर से: अक्टूबर 1989) 




फ्लावर के माने हैं फूल

दादा जाता है इस्कूल


सबको करता नमस्कार जी 

सब करते दादा को प्यार जी


दादा तो सबसे छोटा है 

पर बस्ता कितना मोटा है


कई किताबें हैं बस्ते में 

गिरा नहीं देना रस्ते में


दीदी के संग में जाता है

किंतु अकेला ही आता है


बहुत देर में आती दीदी 

आकर रौब जमाती दीदी


दादा एलकेजी पढ़ता है 

भैया से कुश्ती लड़ता है


माँ के चरण छुआ करता है 

बोतल कंधे पर धरता है


बाबा जी से रोज रुपइया 

लेकर नाचे ता ता थइया


बुला दोस्तों को लाता है

पाप जी से मिलवाता है


स्टेशन साथ साथ आता है 

बाय-बाय करके जाता है


पापा जब वापस आएँगे 

दादा से टुकड़ा खाएँगे


सोनू सारी बात बताए

मोनू मटक मटक कर गाए


दादा बजा बजाकर ताली

लाएगा खाने की थाली


फिर सब एक साथ खाएँगे

फिर सब एक साथ गाएँगे


(ऊधमपुर से: नवंबर 1989)।

कोई टिप्पणी नहीं: