हमारी आह के काँधे,
तुम्हारी चाह की डोली
तुम्हारी माँग में, सजनी!
हमारे रक्त की रोली
मिटाए भी न मिट पाईं
तुम्हारे मन की बालू से
हमारी रूप रेखाएँ
बहुत धो ली, बहुत छोली
प्रथम अनुभव, प्रथम छलना
कठिन अनुभव, कठिन छलना
लुटी किस चक्रवर्ती से
तापसी बालिका भोली
जान पहचान थी जिससे
उम्र आसान थी जिससे
छुड़ाकर भीड़ में अँगुली
गया वह दूर हमजोली
सहमकर और शरमाकर
तड़पकर और लहराकर
'किया है प्यार मैंने तो'
दर्द की कोकिला बोली
#पुरानी_डायरी से
(नई दिल्ली : 7 अगस्त, 1984)