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शनिवार, 13 नवंबर 2010

पछतावा

हम कितने बरस साथ रहे 
एक दूसरे की बोली पहचानते हुए भी चुपचाप रहे 

आज जब खो गई है मेरी ज़ुबान
तुम्हारी सुनने और देखने की ताकत 
छटपटा रहा हूँ मैं  तुमसे कुछ कहने को 
बेचैन हो तुम मुझे सुनने देखने को 

हमने वक़्त रहते बात क्यों न की  

1 टिप्पणी:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

यह तो बुढ़ापे का अहसास है सर जी :)