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गुरुवार, 18 नवंबर 2010

रक्त स्नान

हम तुम्हारी राह में कालीन बन बिछते  गए.
और अपनी कीच से तुम सानते हमको गए..
हमने तुम्हारे पाप को भी शीश पर अपने चढ़ाया.
किंतु  तुमने तो हमेशा दीप औरों का बुझाया..
आज खाली पेट नंगी पीठ हम दर पर खड़े.
आपके संकेत पर लाठी पडीं कोड़े पड़े..
न्यायकर्ता क्या बताएँ भूख का  कर्तव्य क्या?
अब अगर हम हाथ में बंदूक लें अपराध क्या?

आज तक हम ही तुम्हें निज रक्त पर पोसा किए.
अब तुम्हारे रक्त से जन-द्रोपदी का स्नान हो!!

1 टिप्पणी:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

तेवरी के तीव्र तेवर देखने को मिले... आभार॥