अभी उस रात मैं मर गया
घूमते घामते फिर अपने नगर गया
मेरा सबसे प्रिय मित्र सुख की नींद सोया था,
मुझे अच्छा लगा
मुझे शांति मिली
धूप चढ़े मेरी खिड़की में चावल चुगने आता कबूतर
बहुत बेचैन दिखा
चोंच घायल कर ली थी तस्वीर से टकरा कर,
मुझे बहुत खराब लगा
मुझे कभी शांति नहीं मिलेगी
3 टिप्पणियां:
बड़ी अजब अनुभूति है..
`मेरा सबसे प्रिय मित्र सुख की नींद सोया था'
वो मैं ही था... सदा शांति देता हूं ना :)
हृदय को छूने वाली कविता के लिए बधाई॥
@Udan Tashtari
जी हाँ ,
अजब तो होना ही था ;
प्रेतानुभूति है न-प्रेमानुभूति नहीं.
एक प्रलापनुमा रचना पर भी आपने टिप्पणी की.कृतज्ञ हूँ.
@cmpershad
नहीं सा'ब; मेरी मृत्यु पर आप वैसे नहीं सो सकते - जैसे वह सोया था! [ही...ही...ही...ह...ह ..ह ...]
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