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सोमवार, 1 नवंबर 2010

प्रेतानुभूति

अभी उस रात मैं मर गया 

घूमते घामते फिर अपने नगर गया 

मेरा सबसे प्रिय मित्र सुख की नींद सोया था, 
मुझे अच्छा लगा 
मुझे शांति मिली 

धूप  चढ़े मेरी खिड़की में चावल चुगने आता कबूतर 
बहुत बेचैन दिखा 
चोंच घायल कर ली थी तस्वीर से टकरा कर,  
मुझे बहुत खराब लगा 
मुझे कभी शांति नहीं मिलेगी 

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बड़ी अजब अनुभूति है..

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

`मेरा सबसे प्रिय मित्र सुख की नींद सोया था'

वो मैं ही था... सदा शांति देता हूं ना :)


हृदय को छूने वाली कविता के लिए बधाई॥

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

@Udan Tashtari
जी हाँ ,
अजब तो होना ही था ;
प्रेतानुभूति है न-प्रेमानुभूति नहीं.

एक प्रलापनुमा रचना पर भी आपने टिप्पणी की.कृतज्ञ हूँ.


@cmpershad
नहीं सा'ब; मेरी मृत्यु पर आप वैसे नहीं सो सकते - जैसे वह सोया था! [ही...ही...ही...ह...ह ..ह ...]