बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती रचना।
आभारी हूँ, आदरणीया.
‘पता ही नहीं चलाकब तुम दाता बन बैठेऔर मैं भिखारी’बढिया पंक्तिया सरजी, सच है पता ही नहीं चलता कि कब आदमी का स्टेटस कैसे बदल जाता है ॥ बधाई स्वीकारें॥
sundar bhav...gazab ki abhivyakti.. man prasann ho gaya. yahi to hai kavita!
प्रसाद जी झंझट जी धन्यवाद जी वास्ते प्रोत्साहन जी
bahut sunder rachna ..........
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6 टिप्पणियां:
बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती रचना।
आभारी हूँ, आदरणीया.
‘पता ही नहीं चला
कब तुम दाता बन बैठे
और मैं भिखारी
’
बढिया पंक्तिया सरजी, सच है पता ही नहीं चलता कि कब आदमी का स्टेटस कैसे बदल जाता है ॥ बधाई स्वीकारें॥
sundar bhav...
gazab ki abhivyakti..
man prasann ho gaya.
yahi to hai kavita!
प्रसाद जी
झंझट जी
धन्यवाद जी वास्ते प्रोत्साहन जी
bahut sunder rachna ..........
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