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सोमवार, 27 दिसंबर 2010

चर्वणा

मेरे दाँतों में
फँस गई है मेरी अपनी हड्डी.

निकालने की कोशिश में
लहूलुहान हो गया है जबड़ा
कट फट गए हैं मेरे होंठ.

और वे
मेरे विकृत चेहरे को
सुंदर बता रहे हैं,
मेरा अभिनंदन कर रहे हैं
उत्तर आधुनिक युग का अप्रतिम प्रेमी कहकर.

(१६/११/२००३)

2 टिप्‍पणियां:

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

अन्‍दर तक चोट करती हुई रचना।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

bhavpoorn hridayshparsi kavita.
kahne ka lahja...kya kahna!