विनती
('निवेदन' का मैथिली अनुवाद)
हिंदी मूल - डॉ. ऋषभ देव शर्मा * मैथिली अनुवाद - अर्पणा दीप्ति
जीवन
बड्ड छोट थिक
नम्हर अछि तकरार,
एकरा आओर नहिं
खींचह राअर ।
ओहुना हमर-तोहर,
भेंट भेल छल बड्ड
देर सँअ,
जन्मक फेर में पइरक,
भेंट भकअ रहि
गेलहूँ अछूत,
संसारअक बंधन की
कम अछि,
जे अपन्हुँ घेर
बना लेल्हूँ,
लोक लाजअक पट की
कम पइर गेल छ्ल,
जे लगा लेलहूँ,
शक-शुभाअक ताला ।
कखनहूँ,
काँपइत पँखुड़ी
पर,
तृण अंकित करइत
अछि चुंबन,
सौ-सौ प्रलयअक,
झंझा में,
जीवित अछि झंकार,
इ थिक अनहद उपहार
।
कखनहूँ कुछ पलअक
लेल,
मिललहूँ हम ए॓ना,
एक धार में
बहबाआक हेतु,
काल-कोठरी में,
मृत्यु-प्रतीक्षाआक
हेतु,
संग-संग रहबाआक
हेतु
काँटाआक उपर सेज
सजा क,
मीरा भेल दीवानी,
शीश काटि,
राखि देलअक,
पियाअक चौखट पर,
कबिरा ।
मिलन महोत्सव,
दिव्य आरती,
रोम-रोम गावइत
अछि,
आकाशअक थारी में
सूरज-चान,
चौमुख दियरा बारि,
गुंजी पड़ल अछि,
मंगलाचार !!
भोर भेल,
हम बइन गेल्हूँ
शँख,
साँझ भ॓ल्हूँ
मुरली,
छिरयल्हूँ
लहर-लहर बइन,
रेत बइन सुधि
लेलहूँ।
स्वातिइक बुँद
अहाँ भेलहूँ
कखनहूँ, हम
चातक तृषा अधुरा,
सोन चम्पई गंध
भेल्हूँ अहाँ,
हम हिरना कस्तुरी।
आब ,
प्राण जाए पर
लागल अछि,
अखनहूँ त मान
छोड़ूह,
आँखिइक कोर सँअ
झरइत टप-टप,
तपित भेल
हरसिंगार ,
मुखर मौन करइत
अछि मुन्हार।
जीवन
बहुत-बहुत छोटा है,
लंबी है तकरार !
और न खींचो रार !!
यूँ भी हम तुम
मिले देर से
जन्मों के फेरे में,
मिलकर भी अनछुए रह गए
देहों के घेरे में।
जग के घेरे ही क्या कम थे
अपने भी घेरे
रच डाले,
लोकलाज के पट क्या कम थे
डाल दिए
शंका के ताले?
कभी
काँपती पंखुडियों पर
तृण ने जो चुंबन आँके,
सौ-सौ प्रलयों
झंझाओं में
जीवित है झंकार !
वह अनहद उपहार !!
केवल कुछ पल
मिले हमें यों
एक धार बहने के,
काल कोठरी
मरण प्रतीक्षा
साथ-साथ रहने के।
सूली ऊपर सेज सजाई
दीवानी मीराँ ने,
शीश काट धर दिया
पिया की
चौखट पर
कबिरा ने।
मिलन महोत्सव
दिव्य आरती
रोम-रोम ने गाई,
गगन-थाल में सूरज चंदा
चौमुख दियना बार !
गूँजे मंगलचार !!
भोर हुए
हम शंख बन गए,
साँझ घिरे मुरली,
लहरों-लहरों बिखर बिखर कर
रेत-रेत हो सुध ली।
स्वाति-बूँद तुम बने
कभी, मैं
चातक-तृषा अधूरी,
सोनचंपई गंध
बने तुम,
मैं हिरना कस्तूरी।
आज
प्राण जाने-जाने को,
अब तो मान तजो,
मानो,
नयन कोर से झरते टप-टप
तपते हरसिंगार !
मुखर मौन मनुहार !!
("प्रेम बना रहे"- पृष्ठ 81)
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