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मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

युद्धं सोकनि मूडडुगुल नेल :बिना युद्ध वाली तीन डग ज़मीन



 बिना युद्ध वाली तीन डग ज़मीन - ऋषभदेव शर्मा 
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इक्कीसवीं शताब्दी की
पहली रात के अँधेरे में
जन्म लेना चाहता है एक शिशु
पर सहम-सहम जाता है
वापस लौट जाता है
उसी अँधेरी गुफा में
जिसके
शीतल गर्भ में
सोया हुआ था
अनादि काल से।

‘बच्चे!
यह कैसी ज़िद है,
कैसा भय है,
तुम जन्मते क्यों नहीं?’

-अपने माथे का पसीना
पोंछती हुई
पूछती है
धरती की
बूढ़ी़ आया।

अष्टावक्र सरीखा
बच्चा
चीख उठता है गर्भ में से :

‘नहीं आना है मुझे
तुम्हारी इस धरती के नरक में।
क्या है तुम्हारे पास मुझे देने को?
कुछ और नए हथियार बना डालोगे तुम
मेरी पैदाइश की खुशी में,
और दागोगे
मेरे भविष्य की छाती पर
बन्दूकें और मशीनगनें,
फोडो़गे कुछ नए बम,
बरसा दोगे
रेडियोधर्मी विकिरणों की बारिश
मेरे दिमाग के हर कोने में।
मुझे नहीं आना है
तुम्हारी दुनिया हें।
नहीं.......नहीं.....नहीं!’

और फिर छा जाती है
एक चुप्पी।
अजन्मे बच्चे के इन्कार का
कोई जवाब
किसी के पास नहीं है,
किसी के पास नहीं है कोई जवाब |

एक बार फिर
सुनाई पड़ती है
बच्चे की आवाज़,
राजा बलि के दरवाज़े पर
गुहार लगाते
वामन की तरह :

‘मुझे
तुम्हारी दुनिया में आने के लिए
तीन डग ज़मीन चाहिए।
सिर्फ तीन डग
साफ-सुथरी जमीन!
तीन डग जमीन-
जिस पर
कभी कोई
युद्ध न लडा़ गया हो,
तीन डग ज़मीन -
जिस पर
कभी किसी अस्त्र-शस्त्र की
छाया न पडी़ हो,
तीन डग ज़मीन-
जिसकी वायु शुद्ध
और प्रकृति पवित्र हो!’

आवाज़ कहीं खो गई है,
बच्चा भी चुप है,
धरती की बूढी़ आया भी चुप है,
चुप हैं तमाम महामहिम भूमिपति,
तमाम बड़बोले भूमिपुत्र भी चुप हैं।
नहीं बची है किसी के पास-
तीन डग ज़मीन
जिसकी वायु शुद्ध
और
प्रकृति पवित्र हो!

(ऋषभदेव शर्मा)

युद्धं सोकनि मूडडुगुल नेल
(''बिना युद्ध वाली तीन डग ज़मीन - ऋषभदेव शर्मा'' का तेलुगु अनुवाद)
अनुवादक : आर. शांता सुंदरी
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इरवैयॊकटो शताब्दंलो
मॊट्टमॊदटि चीकटि रात्रि
पुट्टालनि चूस्तुन्नदॊक शिशुवु
कानी ऊरिके बॆदिरिपोतोंदि
मळ्ळी वॆळ्ळिपोतोंदि अदे चीकटि गुहलोकि
अनादि नुंची
तनु निद्रिस्तू उंडिन चल्लनि गर्भंलोकि.
'एय् !
एमिटी मॊंडितनं,
ऎंदुकंत भयं,
ऎंदुकु जन्मिंचवु नुव्वु?' -
तन नुदुट पट्टिन चॆमट तुडुचुकुंटू
अडिगिंदि वृद्धुरालैन भूमि.
अष्टावक्रुडिलांटि शिशुवु
कॆव्वुमनि अरिचिंदि गर्भंलोनुंचि :
'नेनु रानु ई नरकंलांटि नी लोकंलोकि.
नाकिच्चेंदुकु एमुंदि नीवद्द?
नेनु पुट्टानन्न संबरंतो
इंका कॊन्नि कॊत्त आयुधालनि तयारु चेस्तावु,
ना भविष्यत्तु छाती मीदिकि गुरिपॆट्टि कालुस्तावु -
तुपाकुलू, मॆषीन् गन् लू
कॊन्नि कॊत्त बांबुलू पेलुस्तावु
रेडियोधार्मिक किरणालनि कुरिपिस्तावु
ना मस्तिष्कंलोनि मूल मूल मूलल्लोनू -
नी ई लोकंलोकि नेनु रानु गाक रानु.
रानु...रानु...रानंटे रानु ...!'
आ तरवात परुचुकुंदि निश्शब्दं
इंका पुट्टनि आ शिशुवु निराकरणकि
ऎवरि दग्गरा लेदु समाधानं.

मळ्ळी विनिपिंचिंदि शिशुवु गॊंतु
बलि चक्रवर्ति गुम्मं दग्गर निलबडि पिलिचिन
वामनुडि गॊंतुला :

'नेनु नी लोकंलोकि रावालंटे
नाकु मूडडुगुल नेल कावालि.
केवलं मूडडुगुले -
स्वच्छमैन, शुभ्रमैन नेल!
आ मूडडुगुल नेल मीद
ऎप्पुडू ऎटुवंटि अस्त्र शस्त्राल नीडा
पडि उंडकूडदु.
अक्कडि गालि परिशुभ्रo गा उंडालि
प्रकृति पवित्रंगा उंडालि !'
आ गॊंतु ऎक्कडो मायमैंदि.
शिशुवु मौनंगा उंडिपोयाडु
नेलतल्ली माट्लाडलेदु
महाराजुलू, भूपतुलू मौनं दाल्चारु
प्रगल्भालु पलिके भूमिपुत्रुलू माट्लाडलेदु.
परिशुभ्रमैन गाली,पवित्रमैन प्रकृतितो विलसिल्ले
मूडडुगुल नेल वाळ्ळॆवरि दग्गरा लेदु!

मूलं : प्रॊ. ऋषभदेव् शर्म
अनुवादं: आर्.शांतसुंदरि


యుద్ధం సోకని మూడడుగుల నేల


ఇరవైయొకటో శతాబ్దంలో
మొట్టమొదటి చీకటి రాత్రి
పుట్టాలని చూస్తున్నదొక శిశువు
కానీ ఊరికే బెదిరిపోతోంది
మళ్ళీ వెళ్ళిపోతోంది అదే చీకటి గుహలోకి
అనాది నుంచీ
తను నిద్రిస్తూ ఉండిన చల్లని గర్భంలోకి.
'ఏయ్ !
ఏమిటీ మొండితనం,
ఎందుకంత భయం,
ఎందుకు జన్మించవు నువ్వు?' -
తన నుదుట పట్టిన చెమట తుడుచుకుంటూ
అడిగింది వృద్ధురాలైన భూమి.
అష్టావక్రుడిలాంటి శిశువు
కెవ్వుమని అరిచింది గర్భంలోనుంచి :
'నేను రాను ఈ నరకంలాంటి నీ లోకంలోకి.
నాకిచ్చేందుకు ఏముంది నీవద్ద?
నేను పుట్టానన్న సంబరంతో
ఇంకా కొన్ని కొత్త ఆయుధాలని తయారు చేస్తావు,
నా భవిష్యత్తు ఛాతీ మీదికి గురిపెట్టి కాలుస్తావు -
తుపాకులూ, మెషీన్ గన్ లూ
కొన్ని కొత్త బాంబులూ పేలుస్తావు
రేడియోధార్మిక కిరణాలని కురిపిస్తావు
నా మస్తిష్కంలోని మూల మూల మూలల్లోనూ -
నీ ఈ లోకంలోకి నేను రాను గాక రాను.
రాను...రాను...రానంటే రాను ...!'
ఆ తరవాత పరుచుకుంది నిశ్శబ్దం
ఇంకా పుట్టని ఆ శిశువు నిరాకరణకి
ఎవరి దగ్గరా లేదు సమాధానం.

మళ్ళీ వినిపించింది శిశువు గొంతు
బలి చక్రవర్తి గుమ్మం దగ్గర నిలబడి పిలిచిన
వామనుడి గొంతులా :

'నేను నీ లోకంలోకి రావాలంటే
నాకు మూడడుగుల నేల కావాలి.
కేవలం మూడడుగులే -
స్వచ్ఛమైన, శుభ్రమైన నేల!
ఆ మూడడుగుల నేల మీద
ఎప్పుడూ ఎటువంటి అస్త్ర శస్త్రాల నీడా
పడి ఉండకూడదు.
అక్కడి గాలి పరిశుభ్రo గా ఉండాలి
ప్రకృతి పవిత్రంగా ఉండాలి !'
ఆ గొంతు ఎక్కడో మాయమైంది.
శిశువు మౌనంగా ఉండిపోయాడు
నేలతల్లీ మాట్లాడలేదు
మహారాజులూ, భూపతులూ మౌనం దాల్చారు
ప్రగల్భాలు పలికే భూమిపుత్రులూ మాట్లాడలేదు.
పరిశుభ్రమైన గాలీ,పవిత్రమైన ప్రకృతితో విలసిల్లే
మూడడుగుల నేల వాళ్ళెవరి దగ్గరా లేదు!

మూలం : ప్రొ. రిషభదేవ్ శర్మ
అనువాదం: ఆర్.శాంతసుందరి

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