ऋषभ की कविताएँ
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बुधवार, 19 अप्रैल 2017
सम्मोहन
अमरित की कनी ज़हर में डुबाई है।
चमकती हुई तलवार निकल आई है।।
यह अलौकिक रूप नज़रें बाँध लेगा;
आज बिजली चाँदनी में नहाई है।।
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