हाथ में लेकर पताका शिखर पर चढ़ता रहा।
आदमी अपनी सरहदें खींचकर लड़ता रहा।।
भूमि जिसके नाम पर खून से लथपथ पड़ी है!
सातवें आकाश पर वह बैठकर हँसता रहा।।
आदमी अपनी सरहदें खींचकर लड़ता रहा।।
भूमि जिसके नाम पर खून से लथपथ पड़ी है!
सातवें आकाश पर वह बैठकर हँसता रहा।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें