ऋषभ की कविताएँ
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बुधवार, 19 अप्रैल 2017
जीवन जो जिया
झल्लाई सी सुबह, पगलाई सी शाम।
क्रोध भरी दोपहर, यों ही दिवस तमाम।।
प्रेत ठोकते द्वार, ले ले मेरा नाम!
रात भूतनी बनी, यहाँ कहाँ विश्राम।।
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