दुश्मन के संग वास की आदत से लाचार हूँ।
वर्षा के बीच प्यास की आदत से लाचार हूँ।।
मैं जानता हूँ, आज फिर तुमने झूठ कहा है;
पर क्या करूँ, विश्वास की आदत से लाचार हूँ।।
वर्षा के बीच प्यास की आदत से लाचार हूँ।।
मैं जानता हूँ, आज फिर तुमने झूठ कहा है;
पर क्या करूँ, विश्वास की आदत से लाचार हूँ।।
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