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रविवार, 20 दिसंबर 2009

छब्बीस जनवरी

छब्बीस जनवरी
लोकतंत्र का पर्व शुभंकर
मंगलमय हो !
तानाशाही मिटे ,
उपनिवेशी सोच हटे ,
सम्प्रदाय औ' जातिवाद की
धुंध कटे , अंधियार छंटे !
गति को वरें -
प्रगति को चुन लें -
दलबंदी के दलदल में जो
संविधान के पाँव फँसे हैं !

धनबल,भुजबल की कीचड में
जन गण जो आकंठ धँसे हैं ,
प्राणों की पुकार को
सुन लें !
अब तक का इतिहास यही है :
प्रभुता पाकर
सब
जनता के खसम बन गए !
ऐसा ही होता आया है !
ऐसा ही होने वाला है !!
कब तक
लोक शक्ति मुहताज रहेगी
त्रिशंकुओं के तंत्र मंत्र की ?
लोकतंत्र में जो निर्णय हो
नीर - क्षीर सबके समक्ष हो !
कुर्सीवालों के समक्ष अब
एक समांतर लोकपक्ष हो !!
जो हो ,
जनता की इच्छा से तय हो !
लोकतंत्र का पर्व शुभंकर
मंगलमय हो !! o