"तेज़ धार का कर्मठ पानी,
चट्टानों के ऊपर चढ़कर,
मार रहा है
घूँसे कस कर
तोड़ रहा है तट चट्टानी !"
(केदारनाथ अग्रवाल).
चट्टानों के ऊपर चढ़कर,
मार रहा है
घूँसे कस कर
तोड़ रहा है तट चट्टानी !"
(केदारनाथ अग्रवाल).
रूप की, गुण की,
निरंतर
कर्म की जय हो !!
नया वर्ष मंगलमय हो !!!
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