''राधिके!''
''हूँ?''
''भला क्या तो है तेरे कान्हा में?''
''पता नहीं.''
''पौरुष?''
''होगा.
बहुतों में होता है.''
''सौंदर्य?''
''होगा.
पर वह भी बहुतों में है.''
''प्रभुता?''
''होने दो.
बहुतों में रही है.''
''फिर क्यों खिंची जाती है तू
बस उसी की ओर?''
''उसे मेरी परवाह है न!''
http://streevimarsh.blogspot.com/2009/07/blog-post_17.html
''हूँ?''
''भला क्या तो है तेरे कान्हा में?''
''पता नहीं.''
''पौरुष?''
''होगा.
बहुतों में होता है.''
''सौंदर्य?''
''होगा.
पर वह भी बहुतों में है.''
''प्रभुता?''
''होने दो.
बहुतों में रही है.''
''फिर क्यों खिंची जाती है तू
बस उसी की ओर?''
''उसे मेरी परवाह है न!''
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