दोहे : 15 अगस्त
0 सहसा बादल फट गया, जल बरसा घनघोर!
इसी प्रलय की राह में, रोए थे क्या मोर?!
0 चिडिया उडने को चली, छूने को आकाश।
तनी शीश पर काँच की, छत, कैसा अवकाश ?!
0 कहना तो आसान है, "लो, तुम हो आजाद'!
सहना लेकिन कठिन है, "वह' जब हो आजाद!!
0 कटी-फटी आजादियाँ, नुचे-खुचे अधिकार।
तुम कहते जनतंत्र है, मैं कहता धिक्कार!!
0 रहबर! तुझको कह सकूँ, कैसे अपना यार?
तेरे-मेरे बीच में, शीशे की दीवार!!
0 मैं तो मिलने को गई, कर सोलह सिंगार।
बख्तर कसकर आ गया, मेरा कायर यार॥
0 खसम हमारे की गली, लाल किले के पार।
लिए तिरंगा मैं खडी, वह ले कर हथियार॥
0 षष्ठिपूर्ति पर आपसे, मिले खूब उपहार।
लाठी, गोली, हथकडी, नारों की बौछार॥
0 ऐसे तो पहले कभी, नहीं डरे थे आप?
आजादी के दर पडी, किस चुड़ैल की थाप??
0 अपराधी नेता बने, पकडो इनके केश।
जाति धर्म के नाम पर, बाँट रहे ये देश॥
0 कैसा काला पड गया, लोकतंत्र का रंग।
अब ऐसे बरसो पिया, भीजे सारा अंग॥
15 अगस्त, 2007
इसी प्रलय की राह में, रोए थे क्या मोर?!
0 चिडिया उडने को चली, छूने को आकाश।
तनी शीश पर काँच की, छत, कैसा अवकाश ?!
0 कहना तो आसान है, "लो, तुम हो आजाद'!
सहना लेकिन कठिन है, "वह' जब हो आजाद!!
0 कटी-फटी आजादियाँ, नुचे-खुचे अधिकार।
तुम कहते जनतंत्र है, मैं कहता धिक्कार!!
0 रहबर! तुझको कह सकूँ, कैसे अपना यार?
तेरे-मेरे बीच में, शीशे की दीवार!!
0 मैं तो मिलने को गई, कर सोलह सिंगार।
बख्तर कसकर आ गया, मेरा कायर यार॥
0 खसम हमारे की गली, लाल किले के पार।
लिए तिरंगा मैं खडी, वह ले कर हथियार॥
0 षष्ठिपूर्ति पर आपसे, मिले खूब उपहार।
लाठी, गोली, हथकडी, नारों की बौछार॥
0 ऐसे तो पहले कभी, नहीं डरे थे आप?
आजादी के दर पडी, किस चुड़ैल की थाप??
0 अपराधी नेता बने, पकडो इनके केश।
जाति धर्म के नाम पर, बाँट रहे ये देश॥
0 कैसा काला पड गया, लोकतंत्र का रंग।
अब ऐसे बरसो पिया, भीजे सारा अंग॥
15 अगस्त, 2007
2 टिप्पणियां:
@ संजय भास्कर
रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों के लिए आभारी हूँ.
कटी-फटी आजादियाँ, नुचे-खुचे अधिकार।
तुम कहते जनतंत्र है, मैं कहता धिक्कार!!
सही कहा है.... ऐसे जनतंत्र को तो धिक्कारा ही जाना चाहिए जहा मक्कार और गुंडे मुख्य मंत्री बने बैठे है॥
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